92 percent of the Earth will become a ball of fire... Research reveals when life will end, know the reason for 'doomsday'

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धरती का 92 फीसदी हिस्सा बन जाएगा आग का गोला... रिसर्च से पता चला कब खत्म होगा जीवन, जानें 'प्रलय' की वजह


ब्रिस्टल विश्वविद्यालय का अनुमान है कि 250 मिलियन वर्ष बाद पृथ्वी पर पैंजिया अल्टिमा नामक एक नया महाद्वीप बनेगा। इसकी वजह से गर्मी बहुत बढ़ जाएगी। इससे ज्वालामुखीय गतिविधि और उच्च आर्द्रता पैदा होगी, जो स्तनधारियों के जीवन को खतरे में डाल देगी। इसकी वजह से पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं रह जाएगा।

पिछले कुछ सालों में दुनिया के खत्म होने को लेकर अलग-अलग दावे किए जाते रहे हैं। एक तरफ वैज्ञानिकों की अटकलें हैं तो दूसरी तरफ अंतिम निर्णय के आने को लेकर कई धार्मिक मत हैं। अब एक नया दावा सामने आया है। ब्रिटिश यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के एक सुपरकंप्यूटर सिमुलेशन के अनुसार, 250 मिलियन वर्ष बाद पृथ्वी सभी स्तनधारियों के रहने लायक नहीं होगी, जिसमें मनुष्य भी शामिल हैं। इसका मतलब है कि पृथ्वी पर जीवन खत्म हो जाएगा। जीवन के खत्म होने का कारण अत्यधिक गर्मी, ज्वालामुखी विस्फोट और एक गर्म महाद्वीप का बनना होगा।

मनी कंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक सुपरकंप्यूटर सिमुलेशन के जरिए पृथ्वी के भविष्य की झलक दिखाई है। इसमें कहा गया है कि अगले 250 मिलियन सालों में धरती के सभी महाद्वीप मिलकर एक नया सुपरकॉन्टिनेंट पैंजिया अल्टिमा बनाएंगे। इससे तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा पहुंच जाएगा। ज्वालामुखी से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड और सूरज की तेज गर्मी से हालात और खराब होंगे। इससे धरती ऐसी जगह में तब्दील हो जाएगी जहां बढ़ी हुई नमी की वजह से पसीना नहीं सूखेगा और इंसान इससे उबर नहीं पाएगा। ऐसे में सिर्फ ध्रुवीय और तटीय इलाके ही रहने लायक बचेंगे। 

92 फीसदी इलाका रहने लायक नहीं रहेगा रिपोर्ट के मुताबिक पैंजिया अल्टिमा का भूभाग इतना बड़ा होगा कि समुद्र का प्रभाव कम हो जाएगा। धरती के तापमान को नियंत्रित करने में महासागरों की अहम भूमिका होती है। ऐसे में धरती की सतह काफी गर्म हो जाएगी। इसके अलावा ज्वालामुखियों की सक्रियता भी बढ़ेगी जिससे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ेगी। इससे ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ेगा इसलिए गर्मी और भी ज्यादा बढ़ेगी। सूरज की तेज रोशनी इसे और बढ़ा देगी और धरती को आग के गोले में बदल देगी।

अध्ययन के अनुसार धरती का 92 फीसदी हिस्सा रहने लायक नहीं रहेगा। जीवन शायद सिर्फ ध्रुवों और तटीय इलाकों में ही संभव हो। इस शोध का हिस्सा रहे डॉ. एलेक्जेंडर फार्नवर्थ का कहना है कि स्तनधारियों के लिए यह तिहरी मार साबित होगी। भीषण गर्मी, नमी और ज्वालामुखी विस्फोट मिलकर ऐसे हालात पैदा करेंगे जिससे उनका जीवन खतरे में पड़ जाएगा।

डॉ. एलेक्जेंडर का कहना है कि ऐसी स्थिति में जिंदा रहने के लिए गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता विकसित करनी होगी या फिर तकनीक का सहारा लेना होगा। यह भी संभव है कि भविष्य में इंसान सतह की गर्मी से बचने के लिए भूमिगत शहर बना ले या रेगिस्तानी जानवरों की तरह सिर्फ रात में ही बाहर निकले। विशेषज्ञ डॉ. हन्ना डेविस का मानना ​​है कि जीवन किसी न किसी रूप में जारी रहेगा। बड़े पैमाने पर विनाश संभव है, लेकिन जीवन कोई रास्ता निकाल ही लेगा।

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